6. अच्छे विचार

31. ईर्ष्या, जलन व द्वेष हमारे सबसे बड़े शत्रु होते हैं। ये हमारी सबसे बड़ी हानि करते हैं और वो सबसे बड़ी हानि है समय की हानि।
क्योंकि हम जिस समय का उपयोग अपनी प्रगति में कर सकते हैं उसे किसी और की प्रगति के बारे में सोचकर यानी ईर्ष्या, जलन व द्वेष करके क्यों नष्ट करें।


32. मनुष्य बिना मित्र और मित्रता के सुख पूर्वक नहीं रहे सकता। बालक हो या वृद्ध, गृहस्थ हो या गृहत्यागी सन्यासी, कवि हो या योद्धा बिना मित्रों के किसी का जीवन नही चल सकता। 
यदि ये संबंध इतना आवश्यक और शक्तिशाली है तो उसके उत्तरदायित्व भी आवश्यक हो जाते हैं।
परन्तु प्रश्न यह उठता है कि मित्र होता कौन है? 
आप कहेंगे कि मित्र वो होता है जो सदा हमारा साथ दे, हमारे सुख में आनंद मनाएं, हमारे दुःख में हमारा सहारा बने, हमारे विरोधियों का शत्रु हो जाए वो। यही ना।
परन्तु क्या वास्तविकता में मित्र की पहचान यही होती है?
मित्र के लिए आवश्यक है कि आवश्यकता पड़ने पर वो आपका विरोध करे।
यदि आप सच्चे मित्र है। यदि आपका मित्र मूर्खतावश, जानबूझकर या किसी कुचकर में फसकर कोई अनुचित कार्य करने जा रहा है तो आपका कर्तव्य बनता है कि सबसे पहले आप उसे वो कार्य करने से रोकें।
उसका विरोध करें। क्योंकि यदि मित्र ने कुछ अनुचित किया तो आप भी स्वयं को अपयश का भागीदार बनने से नही रोक पाएंगे।

सतविचार -: हमारी दृष्टि ही हमारे मानसिक जगत का सृजन करती है।

जय गुरुदेव नाम प्रभुका || जयगुरुदेव ||  हमारी अपेक्षाएं, तुलनाएं, वासनाये और पूर्वाग्रह से भरी तृष्णाएं ही हमारी अशांति की जड़ हैं दृष...