सतविचार -: हमारी दृष्टि ही हमारे मानसिक जगत का सृजन करती है।

जय गुरुदेव नाम प्रभुका

||जयगुरुदेव|| हमारी अपेक्षाएं, तुलनाएं, वासनाये और पूर्वाग्रह से भरी तृष्णाएं ही हमारी अशांति की जड़ हैं दृष्टि में परिवर्तन होते ही सारी सृष्टि रुपांतरित नजर आने लगती है और जीवन में आनंद ही आनंद शेष रह जाता है संक्षेप में कहें तो समस्त दृष्टियों से मुक्ति का नाम ही सम्यक दृष्टि है जो है जैसा है उसे वैसा ही जाने हम स्वयं अपने संसार के सृजक हैं हमारी दृष्टि हमारे मानसिक जगत का सृजन करती है हम खुद अपनी दुनिया के रचियता हैं सौभाग्य-दुर्भाग्य तथा सुख-दुख दोनों ही हमारी धारणाओं के परिणाम हैं देखा जाए तो सुख और दुख दो चीजें नहीं है सुख दुख का हिस्सा है और दुख सुख का |
     यह सुख है तो हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा होती है यह थोड़ा कठिन होगा समझना | हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा है प्रेम की भी अपनी पीड़ा है सुख का अपना दंश है सुख की भी अपनी चुभन है सुख का भी अपना कांटा है सुख दुख को अलग करके जीवन को नहीं जिया जा सकता | दोनों को एक दूसरे का पर्याय ही मानना होगा |
     हमारा सारा दुख अपनी ही गलत दृष्टि का परिणाम है | महावीर ने कहा कि मनुष्य स्वयं का शत्रु है और स्वयं अपना ही मित्र भी होता है | सम्यक दृष्टि उपलब्ध हो जाए तो हमसे बड़ा हितेषी हमारा कोई नहीं | दृष्टि असम्यक हो तो हमसे बड़ा शत्रु हमारा कोई नहीं | फूल और शूल दोनों का अतिक्रमण कर समभाव समत्व को उपलब्ध होना भी हम पर ही निर्भर करता है | समभाव  अथवा सम्यक दृष्टि का अर्थ है अनुकूल प्रतिकूल दोनों ही के प्रति साक्षी और समान भाव | यश अपयश हार जीत सफलता- विफलता, गरीबी-अमीरी, स्वास्थ्य-बीमारी इन द्वंदों में समता रखना साक्षी में स्थित कर देता है जो की बड़ी से बड़ी साधना है |भगवान कृष्ण ने कहा है कि समत्व में ही योग है |
     जो भी मिला हो, जैसे भी मिला हो , उसकी प्रशंसा करना सीखें| जो है सो बहुत अच्छा कहना सीखें, जिंदगी आसान होने लग जाएगी |


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सतविचार -: हमारी दृष्टि ही हमारे मानसिक जगत का सृजन करती है।

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