39. हम सब शीघ्र ही सफलता चाहते हैं, ढेर सारी सम्पत्ति और सुख चाहते हैं। और ऐसे में हम कई बार छोटे मार्गों का चयन कर लेते हैं। वो मार्ग जिनमें परिश्रम नहीं होता, जिनमें होता है तो केवल छल, कुटिलता और भाग्य का सहारा जैसे कि जुआ। कोई जुए के खेल में धन लगाता है, कोई दांव लगाता है। और ये भूल जाता है कि जुआ ऐसा दलदल है जिसमें एक बार गिरे तो शर्वनाश से पहले निकलना असंभव है। यदि आप जीते तो और जीतने की भूख बढ़ जायेगी, और यदि आप कुछ हार बैठे तो उसे पुन: पाने के लिए आप फिर से खेलेंगे। मनुष्य को ये आभास ही नहीं होता कि अपनी सम्पत्ति के साथ-साथ वो अपनी मानवता, अपने संस्कार, अपना धर्म और अपना उत्तरदायित्व सभी जुए की भेंट चढ़ा देता है। इसलिए कुछ पाना है तो परिश्रम से पाओ। यदि कुछ जुए में जीता है तो वो उतना ही शीघ्र खो दोगे, चूंकि उसे परिश्रम से पाया नही गया है और उसकी रक्षा के लिए आपके मन में स्वाभाविक प्रयास भी नहीं होंगे।