12. कर्म हमारे जीवन का एक अभिन्न भाग है।
कर्म सभी करते हैं परंतु क्या कर्म करने से पहले एक बार विचार करते हैं, क्या सोचते हैं कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होगी और वो किसी और कर्म, किसी और फल को जन्म देगी।
13. कभी-कभी हमारी पिछली पीढ़ी के कर्मों का फल हम खाते हैं और हमारे कर्मों का फल हमारी संतति खाती है।
14. कर्म करते समय फल के बारे में सोचना या ना सोचना ये प्रत्येक व्यक्ति का विशेष अधिकार है। परंतु वो फल बो रहा है या कांटे उसपे विचार कर लेना उसका कर्तव्य है। क्योंकि मीठा फल मिलेगा या कांटों का दंश मिलेगा, ये तो आज आपके बोये पर निर्भर करता है। नियति केवल ये निर्धारण करती है कि उसे आप भोगेंगे या आपका भविष्य।