काल की करतूतें

स्वामी जी की शिक्षाप्रद कहानी

एक राजा था। वह अपने राज्य में सदा
सुख-शान्ति चाहता था एक दिन वह सैर पर
अकेले निकला। जब कुछ दूर गया तो देखा कि
एक रीछ जा रहा है। फिर देखा कि एक शेर
एक तरफ से आया। रीछ शेर को देखते ही उस
पर टूट पड़ा । शेर भी डट गया। दोनों आपस में
लड़ने लगे। अंत में शेर को रीछ ने मार डाला
और फिर आगे बढ़ा।

राजा रीछ के पीछे-पीछे चला थोड़ी दूर
आगे गया तो देखा कि वह रीछ बहुत ही सुन्दर
औरत बन गया। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ।
वह उस औरत के पीछे-पीछे जाने लगा। थोड़ी
देर में देखा कि एक मैदान के पास में कहीं
कोई घर नहीं था एक कुआं मैदान में था। वह
औरत उस कुंये पर बैठ गयी। राजा एक झाड़ी
में छिप कर तमाशा देखने लगा।

थोड़ी देर में दो जवान आये। दोनों भाई थे वे
सैनिक थे। दोनों साथ में तलवार वगैरह लिए थे।
धूप हो गयी थी। दोनों भाई कुंए पर पानी पीने के
लिए बैठे और विश्राम करने लगे कुएं से थोड़ी दूर
कोई दुकान थी। एक भाई ने कहा कि मैं पानी
निकालता हूं तुम दुकान से कुछ मिठाई वगैरह
लगाओ । छोटा भाई दुकान पर चला गया। जब तक
वह दुकान पर रहा उस औरत ने बड़े भाई से कुछ
बातें किया। उतने देर में ही बड़ा भाई उस औरत
पर आसक्त हो गया।

जब छोटा भाई दुकान से आ गया तो बड़ा
भाई फिर किसी काम से दुकान पर गया। इस
बीच उस औरत ने छोटे भाई से बात-चीत
किया और अपने कपड़ों को जहां-तहां फाड़
दिया, बाल वगैरह बिखरा दिया।
जब बड़ा भाई आया तो औरत ने इशारा
किया। बड़ा भाई छोटे भाई पर गुस्सा हो गया।
छोटे ने कहा, मैंने तो कुछ नहीं किया और तुम
कौन होते हो, मैं इससे शादी करूंगा बड़े ने
कहा, यह क्या बकते हो। यह मेरी पत्नी है। इस
पर बातों-बातों में दोनों आपस में झगड़ा करने
लगे। फिर दोनों तलवार निकाल लिए और
आपस में ही दोनों एक दूसरे को मार डाले।
राजा ने यह सब खेल देखा।

जब दोनों सिपाही मर गये तो वह औरत उठ
गयी और आगे चली। राजा उसके पीछे-पीछे
चला। चलते-चलते वह नदी के किनारे पहुंची।
राजा भी गया। नदी के तीर पर पहुंच कर वह सर्प
हो गयी और नदी में चली गयी। राजा भी एक नाव
पर सर्पिनी के पीछे-पीछे चला। उसने देखा कि
२०-२५ आदमी से भरी नाव जा रही है। वह
सपना इस नाव पर चढ़ गयी और इधर-उधर
नाव पर फिरने लगी नाव में लोग सांप देखकर
इधर से उधर भागने लगे। जब लोग इधर जाऊं तो
सर्पिनी भी इधर आ जाय और जब लोग उधर
जाय तो सर्पिनी भी उधर जाती थी।

इसी भाग-दौड़ में नाव उलट पड़ी। २०-२५ आदमी
जो कि नाव पर थे सभी के सभी डूब गये। सपिनी
तब बाहर निकली। राजा ने भी पीछा किया।
जब बाहर आई तो सर्पिनी ने एक पंडित
का वेश बनाकर आसन लगाया और बैठ गयी।
चंदन माला बहुत सा लगा लिया था। जब राजा
ने देखा तो सोचा अब इनसे जानकारी करने
लायक अवसर है कि यह कौन है। वह तुरन्त
उस पंडित के सामने आया। प्रणाम किया और
पूछा कि महराज आप कौन और क्या करते है?
आपके पीछे मैं बहुत देर से लगा हूँ। आप का
खेल देख रहा हूं, मैं चकित हूं।
पंडित ने कहा, क्या करोगे जान कर।
जाओ तुम राजा हो अपना काम करो। राजा ने
जिद्द किया। बहुत जिद्द करने पर पंडित ने कहा
कि मेरा नाम काल है। मैं सबका काल हूं।
तुमने देखा कि तुम्हारे सामने मैंने जिनका जैसे
वक्त पूरा हुआ मैंने उसका खात्मा किया। यही
मेरा काम है। अब चले जाओ।

राजा ने कहा कि महाराज अब पंडित
बनकर आप क्या करेंगे। पंडित ने कहा कि यह
मत पूछो और तुम चले जाओ। राजा ने कहा,
अच्छा महाराज तुरन्त मुझे आप बता दें कि मैं
कब मरूंगा और कैसे मरूंगा। पंडित ने कहा
कि यह नहीं बताऊंगा कि कब मरोगे परन्तु यह
याद रखो जब कभी तुम कोठे पर से गिर जाना
और जरा सा भी घुटनों में खरोच पड़ जाय तो
तुम्हारी मौत उसी से हो जायेगी। राजा ने सुन
लिया और वापस चला आया। संयोगवश कुछ
ही दिन बाद राजा एक दिन कोठे पर से नीचे
अचानक गिरा, जरा सी खरोच घुटने में आई।
राजा ने कहा कि अब राज काज तुम लोग
सम्भालना। मैं अब मर जाऊंगा। उसकी बातों
पर किसी ने विश्वास नहीं किया क्योंकि वह
तन्दुरूस्त था और कोई चोट भी विशेष न लगी
थी। थोड़ी देर में ही राजा मर गया।

परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने यह
समझाया कि किसी को अपने शरीर पर विश्वास
नहीं करना चाहिए।
जब जिसकी सांसों की पूंजी
पूरी हो जायेगी
जैसे कि राजा का हुआ, यह
किराये का मकान खाली करा लिया जायेगा

इसलिए जीवन सफल उसी का है जो जब तक
सांस है तब तक अपना काम पूरा कर ले। जन्म
मरण के बंधन तोड़ डाले । कौन जाने किसकी कब
सांस पूरी हो जाए और यह शरीर छोड़ दे।
काल
ने किसी पर न कभी दया की, न करेगा
जैसे
काल ने बाघ को, औरत बनकर सिपाहियों को,
नागिन बनकर नाव के लोगों को मारा वैसे ही
जिसका जैसे वक्त पूरा हो जाता है वह तुरन्त
मकान खाली करा लेता है।

सतविचार -: हमारी दृष्टि ही हमारे मानसिक जगत का सृजन करती है।

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