प्रेरक प्रसंग : समय जा रहा है...
क्या आपने जंजीर खोल ली ?(लघु कथा)
एक पूर्णिमा की रात में एक छोटे-से गांव में, एक बड़ी
अदभुत घटना घट गई। कुछ जवान लड़कों ने शराबखाने में
जाकर शराब पी ली और जब वे शराब के नशे में मदमस्त
हो गये और शराब-घर से बाहर निकले तो चांद की बरसती
चांदनी में उन्हें यह खयाल आया कि
नदी पर जायें और नौका-विहार करें।
रात बड़ी सुन्दर और नशे से भरी हुई थी। वे गीत गाते हुए
नदी के किनारे पहुंच गये।
नाव वहां बंधी थी। मछुए नाव बांधकर
घर जा चुके थे। रात आधी हो गयी थी।वे एक नाव में सवार
हो गये। उन्होंने पतवार उठा ली और नाव खेना शुरू किया।
फिर वे रात देर तक नाव खेते रहे। सुबह की ठण्ड़ी
हवाओं ने उन्हें सचेत किया।
जब उनका नशा कुछ कम हुआ तो उनमें
से किसी ने पूछा, ‘‘कहां आ गये होंगे
अब तक हम। आधी रात तक
हमने यात्रा की, न-मालूम कितनी दूर तक निकल आये होंगे।
नीचे उतर कर कोई देख ले कि किस दिशा में हम चल रहे हैं,
कहां पहुंच रहे हैं?”जो नीचे उतरा था,
वह नीचे उतर कर हंसने लगा।
उसने कहा, ‘‘दोस्तो! तुम भी उतर आओ।
हम कहीं भी नहीं पहुंचे हैं।
हम वहीं खड़े हैं, जहां रात नाव खडी थी। ”वे बहुत हैरान हुए।
रात भर उन्होंने पतवार चलायी थी और पहुंचे कहीं भी नहीं थे!
नीचे उतर कर उन्होंने देखा तो
पता चला, नाव की जंजीरें किनारे
से बंधी रह गयी थीं, उन्हें वे खोलना भूल गये थे!
जीवन भी, पूरे जीवन नाव खेने पर,
पूरे जीवन पतवार खेने पर
कहीं पहुंचता हुआ मालूम नहीं पड़ता। मरते समय आदमी
वहीं पाता है स्वयं को, जहां वह जन्मा था!
ठीक उसी किनारे पर,
जहां आंख खोली थी- आंख बंद करते
समय आदमी पाता है कि वहीं खड़ा है।
और तब बड़ी हैरानी होती है कि इतनी जो दौड़- धूप की,
उसका फल क्या हुआ? वह जो प्रण किया था कहीं पहुंचने का,
वह जो यात्रा की थी कहीं पहुंचने के लिए,
वह सब निष्फल गयी!
मृत्यु के क्षण में आदमी वहीं पाता है अपने को, जहां वह जन्म
के क्षण में था! तब सारा जीवन
एक सपना मालुम पड़ने लगता है।
नाव कहीं बंधी रह गयी किसी किनारे से।हां, कुछ लोग-कुछ
सौभाग्यशाली लोग, मरते क्षण वहां पहुंच जाते हैं, जहां जीवन
का आकाश है, जहां जीवन का प्रवास है, जहां सत्य है, जहां
परमात्मा का मंदिर है। लेकिन, वहां वे ही लोग पहुंचते हैं,
जो किनारे से, खूंटे से जंजीर खोलने की याद रखते हैं।
एक बार एक शिष्य ने अपने गुरुदेव से पूछा - भजन
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गुरुदेव - तो जिन्दगी का हर दिन आखिरी समझो |
एम. गढवाल ©mgadhwal.blogspot.com